गुरु पूर्णिमा पर की जाती है महर्षि वेद व्यास की पूजा, जानिए महत्व
हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व महर्षि वेद व्यास को समर्पित है। दरअसल, आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को वेद व्यास का जन्म हुआ था। यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का होता है। इस साल आज यानी की 21 जुलाई 2024 को गुरु पूर्णिमा यानी की व्यास पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। महर्षि वेद व्यास का जन्म लगभग 5000 साल पहले द्वापर युग के दौरान हुआ था। तो आइए जानते हैं व्यास पूजा और इस पर्व के महत्व के बारे में…
कौन हैं महर्षि वेद व्यास
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, वेद व्यास एक अमर व्यक्ति हैं और वह अष्ट चिरंजीवियों में शामिल हैं। उन्होंने मानवता की भलाई के लिए कलियुग के अंत कर पृथ्वी पर रहने का फैसला किया था वह वेदों के पहले उपदेशक और महाकाव्य महाभारत के रचयिता भी थे। इसलिए उनका नाम वेद व्यास पड़ा। महर्षि वेद व्यास को प्रथम गुरु और लोगों को वेदों के बारे में शिक्षा देने और व्याख्या देने का श्रेय जाता है।
पूजन मुहूर्त
बता दें कि 20 जुलाई की शाम 05:59 मिनट से पूर्णिमा तिथि की शुरूआत हुई है, वहीं 21 जुलाई को दोपहर 03:46 मिनट पर पूर्णिमा तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के अनुसार, 21 जुलाई 2024 को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। वहीं 21 जुलाई की सुबह 05:46 मिनट से दोपहर 03:46 मिनट तक पूजा कर सकते हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने अपनी मां सत्यवती जोकि हस्तिनापुर की रानी थीं, उनके भगवान के दर्शन की इच्छा प्रकट की। तब सत्यवती ने उनको समझाया कि उनको भगवान को खुद प्राप्त करना होगा। यह सुनकर वेद व्यास वन चले गए और घोर तपस्या में लीन हो गए। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको दर्शन दिया और ब्रह्म ज्ञान का सार समझाया। भगवान शिव शंकर ने उनको यह ज्ञान मानव समाज तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा था। तब ऋषि वेद व्यास ने अपने ज्ञान के आधार पर चार वेदों सहित गूढ़ ग्रंथों की रचना की।
फिर वेद व्यास ने अन्य ऋषियों को ब्रह्म ज्ञान दिया और ऋषियों ने उनको अपना प्रथम गुरु मानकर उनकी पूजा की। जिसके बाद से गुरु-शिष्य की परंपरा शुरू हो गई और आश्रम में शिक्षाएं दी जाने लगीं। इसके साथ ही इसी दिन से गुरु पूर्णिमा का पर्व शुरू हुआ था। वहीं आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेदव्यास जी को गुरु मानकर उनकी पूजा-अर्चना की थी।