धर्म

हर साल बेहद धूमधाम से निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा, जानिए इसके पीछे का कारण

हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की भव्य  रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इस रथ यात्रा को महोत्सव और  गुंडिचा नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि इस बार 07 जुलाई 2024 से रथ यात्रा की शुरूआत हो रही है। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

भगवान जगन्नाथ की  रथ यात्रा का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। इस यात्रा में न सिर्फ देश बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु शामिल होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर साल यह  रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है। ऐसे में अगर आपको इसका जवाब नहीं पता है, तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि  हर साल  जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकली जाती है और इसकी खासियत क्या है।

क्यों निकाली जाती है  जगन्नाथ रथ यात्रा रथ यात्रा

 पद्म पुराण के अनुसार, एक बार सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर देखने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान जगन्नाथ ने देवी सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाया। इसके बाद वह अपनी मौसी के घर गए और वहां पर सात दिनों तक रुके। तभी से हर साथ भगवान जगन्नाथ की  रथ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू हो गई।

जगन्नाथ रथ यात्रा की खासियत

भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं और इस रथ को शंखचूड़ नामक रस्सी से खींचा जाता है। बता दें कि इस रथ को बनाने के लिए नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन विशालकाय और भव्य रथों पर विराजमान होते हैं। इनमें से सबसे पहला रथ बलराम जी का चलता है और बीच में सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है।

इस रथ को बनाने में कील का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक किसी भी शुभ व आध्यात्मिक कार्य को करने के लिए कील या कांटे का उपयोग करना अशुभ माना जाता है।

बता दें कि भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का रथ लाल रंग का होता है, तो वहीं भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल या पीला होता है।

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