आज से हो रहा जया पार्वती व्रत का समापन, जानिए पूजन विधि और महत्व
हिंदू धर्म में जया पार्वती व्रत का खास महत्व होता है। हर साल आषाढ़ महीने की त्रयोदशी तिथि से यह व्रत शुरू होता है। इसको गौरी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। वहीं विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना से यह व्रत करती हैं। बता दें कि कहीं पर एक दिन तो कहीं पर यह व्रत 5 दिनों तक किया जाता है। 19 जुलाई 2024 से शुरू हुआ यह व्रत आज यानी की 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है।
जया पार्वती व्रत को करने वाली महिलाएं 5 दिनों तक लगातार व्रत करती हैं और इस दौरान मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। जया पार्वती व्रत शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू होकर पांच दिनों बाद पूर्णिमा को समाप्त होती है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजन विधि के बारे में…
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने कड़ी तपस्या की थी। कई दिनों तक मां पार्वती ने पूजा-पाठ और व्रत किए थे। कई कड़ी परीक्षाओं से गुजरने के बाद मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाया था।
शुभ मुहूर्त
जया पार्वती व्रत मां पार्वती को समर्पित होता है। यह व्रत 19 जुलाई 2024 से शुरू हुआ था। वहीं आज यानी की 24 जुलाई 2024 को इस व्रत की समाप्ति होगी। आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से इस व्रत की शुरूआत होती है और चतुर्थी तिथि पर खत्म होता है।
पूजन विधि
जया पार्वती व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की खास पूजा का विधान है।
यह व्रत पूरे 5 दिनों तक चलने वाला लंबा व्रत है।
स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें और चौकी पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
अब उन्हें कुमकुम, अष्टगंध, ऋतु फल, फूल और अन्य चीजें अर्पित करें।
इस दिन मां पार्वती को श्रृंगार का सारा सामान अर्पित करें और मां पार्वती को खीर का भोग लगाएं।
वैदिक मंत्रों का जाप करें और आरती करें।
वहीं गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराना चाहिए औऱ यथासंभव दक्षिणा दें।
जया पार्वती व्रत की महिमा
सनातन धर्म में जया पार्वती व्रत की खास महिमा मानी जाती है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, इस व्रत में मां पार्वती की पूजा करने से मनचाहा वर मिलता है और सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को सुहानिग महिलाओं के अलावा कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं। इस व्रत को विधि-विधान से करने से दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाता है और ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।