बैठे बिठाए भाजपा को ऑक्सीजन
ताजा प्रसंग हरियाणा का है। वहां कांग्रेसियों ने बैठे बिठाए भाजपा को ऑक्सीजन दे दी। टिकट बंट गए। लोगों ने नामांकन भर दिए। नाम वापसी की तारीख खतम हो गई फिर अचनानक कुमारी सैलजा को याद आया कि उनके गुट को टिकट कम मिले हैं तो वे जा कर कोपभवन में बैठ गईं। कांग्रेस हाईकमान और ज्यादा खुशामद में लग गया। खुद कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने दो बार सैलजा से मुलाकात की। उनके बर्थ डे पर खूब हंसते हुए जैसे उनके फोटो आमतौर पर दिखते नहीं मिठाई खिलाई। और मुख्यमंत्री पद का आश्वासन दिया।
कांग्रेस में क्षत्रप कब पैदा होते हैं? तब जब हाईकमान कमजोर होता है। और क्षत्रपों के ताकतवर होने से क्या होता है? कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारने लगती है। नेता का अच्छा होना, सरकार से नहीं डरना, आम लोगों से खूब घुलना मिलना अलग बातें हैं। ताजी हवा का झौंका भी है मगर अपनी पार्टी के लोगों से अपनी बात नहीं मनवा पाना, उनके छोटे-छोटे दबावों के सामने झुक जाना अच्छे नेतृत्व की निशानी नहीं है।
भारत में नेता घोड़े वाला ही चलता है। नकेल डाले हुए अपने को दमदार दिखाता हुआ। हमारे यहां दुल्हे भी इसीलिए घोड़े पर बिठाकर, तलवार बांध कर, साफा पहने हुए पीछे बारात के साथ ही शोभायमान माने जाते हैं। दुल्हे में दम हो या ना हो मगर हाथ तलवार की मूठ पर ही रहता है। तलवार, घोड़ा और साफा शक्ति के प्रतीक माने जाते है।
इसलिए नेता को भी शक्तिशाली दिखना पड़ता है। नरेंद्र मोदी क्यों कहते हैं कि 56 इंच की छाती! और राहुल को क्यों जवाब देना पड़ता है कि अब नहीं रही?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व प्रदर्शन और नेता विपक्ष राहुल गांधी के इसी को तोडऩे की कोशिश में ही राजनीति का सारा खेल है। ममता बनर्जी क्यों रणचंडी बनी रहती हैं? लालू यादव क्यों अपनी खराब सेहत के बावजूद बीच-बीच में आकर गरजते हैं? उद्धव ठाकरे जिनकी छवि एक सज्जन और विनयशील नेता की थी क्यों अब मोदी और अमित शाह को उन्हीं की भाषा में चैलेंज करते हैं ? और यूपी में अखिलेश यादव को
क्यों अचानक बदले हुए रूप में सामने आना पड़ा?
केवल और केवल जनता के सामने और उससे पहले अपनी पार्टी के बीच में दबंग दिखने के लिए। दबंग आज के समय में खराब अर्थों में प्रयोग होने लगा हो मगर कभी तो न दबने वाले विद्रोहियों के लिए जो गलत लोगो के सामने खड़े होते थे उनके लिए प्रयुक्त होता था, बांके ! आज तो प्रचलन में नहीं रहा।
मगर कभी दबंग के बदले बांके प्रयुक्त होता था। भगवतीचरण वर्मा की मशहूर कहानी दो बांके! इस पर बहुत फिल्में विल्में भी बनी हैं। गजब कहानी है। पढ़ कर देखिएगा। अब यह लिखने की तो जरूरत नहीं कि भगवतीचरण वर्मा बहुत बड़े लेखक थे।
वैसे आजकल हालत यही हो गई है कि लोगों का पढऩे लिखने से नाता खतम करवा दिया गया है। सत्ता पक्ष में किसी का नाता साहित्य से नहीं है। जिस दिन सुषमा स्वराज ने वाजपेयी के मंत्री के रूप में राज्यसभा में सीपीआईएम की सदस्य सरला माहेश्वरी के प्रेमचंद को कोर्स से क्यों हटाया, के सवाल के जवाब में यह कहा था कि क्या प्रेमचंद, प्रेमचंद करते रहे हैं तो हम समझ गए थे कि यह साहित्य को भी नहीं बचने देंगे।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कुछ नहीं बोला। और हमें याद आ गया कि एक ऐसी प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने महादेवी वर्मा क्या लिखती हैं, बोलने पर राजस्थान के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिय़ा को हटा दिया था। जी हां इन्दिरा गांधी ने 1981 में। तो कांग्रेस के नेता ऐसे होते थे। शक्तिशाली। आज तो कांग्रेसी राहुल के खिलाफ ही पता नहीं क्या बोल जाते हैं साजिश करते हैं मगर उनसे पूछने वाला भी कोई नहीं होता।
पार्टी इसीलिए कमजोर हुई है। ताजा प्रसंग हरियाणा का है। वहां कांग्रेसियों ने बैठे बिठाए भाजपा को आक्सिजन दे दी। टिकट बंट गए। लोगों ने नामांकन भर दिए। नाम वापसी की तारीख खतम हो गई फिर अचनानक कुमारी सैलजा को याद आया कि उनके गुट को टिकट कम मिले हैं। हुड्डा के लोगों को ज्यादा मिले हैं। वे जाकर कोप भवन में बैठ गईं। जिस समय जनता के बीच में जाकर उनकी बात सुनना थी कि वे भाजपा सरकार से नाराज क्यों हैं उस समय वे टीवी स्टूडियो जा जाकर यह बताने लगीं कि वे कांग्रेस से नाराज क्यों हैं।
पहले तो कहा गया कि हुड्डा समर्थकों ने उनके खिलाफ अपशब्द बोले। कौन हैं वह लोग? एक वीडियो सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है। जिसमें दो लोग एक कैमरे वाले के सामने कुछ बोल रहे हैं। उनका क्या नाम है? कांग्रेस में क्या स्थिति है? कुछ पता नहीं चल रहा। बस यह कहा जा रहा है कि हुड्डा समर्थक हैं।
इसी बात पर पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने उन्हें भाजपा में आने का निमंत्रण दे दिया। मायावती द्वारा अपना उत्तराधिकारी घोषित अनिल आनंद ने इसे दलितों का अपमान बताकर उन्हें बसपा में आने का न्योता दे दिया।
मतलब पूरे हरियाणा में कोहराम मचा दिया गया।
कौआ कान ले गया – – – कान ले गया का शोर हो गया। हुड्डा को भी अपनी सफाई देना पड़ी कि हमारे किसी समर्थक ने ऐसा नहीं किया है। और अगर कुछ पता चलेगा तो कार्रवाई होगी। अब वह कौन थे क्या थे किसी को पाता नहीं चला। चुनाव के टाइम में कौन क्या बोलता है किसी को मालूम नहीं पड़ता। कौन किस का समर्थक बन जाता है यह भी नहीं। तो यह मुद्दा नहीं चला। तो सैलजा और सुरजेवाला मुख्यमंत्री का मुद्दा ले आए।
यहीं कांग्रेस हाईकमान को पूछना था कि भाईसाहब, बहन जी क्या पूरा कब्र में ही उतार कर मानोगे? मगर उल्टा कांग्रेस हाईकमान और ज्यादा खुशामद में लग गया। खुद कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने दो बार सैलजा से मुलाकात की। उनके बर्थ डे पर खूब हंसते हुए जैसे उनके फोटो आमतौर पर दिखते नहीं मिठाई खिलाई। और मुख्यमंत्री पद का आश्वासन दिया।
प्रसंगवश बिना हंसे मुस्कराए फोटो मनमोहन सिंह के भी आते थे। मगर वह भावहीन चेहरा होता था। खरगे जी का फेस मोदीजी जैसा आता है। चेहरे पर बेजारी के भाव। मनमोहन मिल कर कितने खुश हैं इसको भारीपन से छुपा पाते थे। यह दोनों मिलते हुए कितने उदासीन हैं। कष्ट में हैं यह इनका चेहरा बताता है।
खैर किसी से भी मिलकर खुशी का इजहार अच्छी बात है। मगर बीच चुनाव में अनुशासनहीनता को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी शायद ही इस समय कंगना रनौत से मिलें। और मिले भी तो डांट लगाएंगे। कि इस चुनाव के समय किसान बिल वापस लाने की बात कहने की क्या जरूरत थी?
कंगना ने बीजेपी का नुकसान किया। मगर उसी लाइन पर जहां पहले से हो रहा है। किसान के मुद्दे पर हरियाणा का पूरा चुनाव आ गया है। उसमें जितना नुकसान होना था सब हो गया। अब उससे ज्यादा नहीं हो सकता। मगर सैलजा ने जो कांग्रेस का नुकसान किया है वह बिल्कुल नए क्षेत्र में। दलितों के बीच। जो हरियाणा में कांग्रेस के साथ थे। उनके मन में शक के बीज डाल दिए।
दलितों का इसी तरह मायावती उपयोग करती हैं। दलित की बेटी का अपमान। दलितों के लिए कुछ ठोस करने के बदले, मोदी सरकार ने सरकारी नौकरियों में भर्ती बंद करके उनका आरक्षण का लाभ खतम कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा का फैसला देकर एक नई स्थिति को जन्म दे दिया। जिस पर बात करने के लिए आज तक मोदी सरकार ने सर्वदलीय बैठक तक नहीं बुलाई। न ही किसी पक्ष की शंकाओं का समाधान किया।
लेकिन इन सब पर बात करने के बदले वे दलित भावनाओं का राहुल गांधी के खिलाफ भडक़ाने में लगी रहती हैं। वैसे ही इस समय सैलजा द्वारा नाराज होने फिर बड़े अहसान के साथ गुरुवार 26 सितंबर से चुनाव प्रचार करने के लिए तैयार होने के पूरे एपिसोड ने भी बेवजह दलितों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए।
यह कांग्रेस हाईकमान को सोचना है कि इससे उसकी संभावनाओं पर क्या असर पड़ा। गुटबाजी ने कांग्रेस को हरियाणा में पिछला विधानसभा चुनाव भी हरवाया। और राजस्थान भी इसी गुटबाजी के वजह से गया।
राहुल कहते हैं कि मोदी मुझसे डरते हैं। लेकिन अगर कांग्रेस के क्षत्रप काबू में नहीं हैं तो उस प्रभाव का उतना फायदा नहीं मिलेगा जितना मिल सकता है। कांग्रेस की ताकत क्षत्रप नहीं कार्यकर्ता और जनता है। राहुल को समझना होगा।